Add To collaction

राष्ट्र कवियत्री ःसुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ ःबिखरे मोती

अनुरोध

२)
उस दिन निरंजन के जाने के बाद वीणा ने रात भर जाग कर सारी रुबाइयों का अनुवाद कर डाला । अब केवल एक बार देख लेने ही की आवश्यकता थी । निरंजन की पत्नी का पत्र पढ़ लेने के बाद वीणा अपने आप ही अपनी नज़रों में गिरने लगी। उसे ऐसा मालूम होता था कि निरंजन के प्रति उसका प्रेम स्वार्थ से परिपूर्ण है; क्योंकि उसे उनका साथ अच्छा लगता है और इसीलिए वह उन्हें अपने दुराग्रह से रोके जा रही है। निरंजन को पत्नी की नम्रता एवं उसके शील और विश्वास के सामने वीणा अपनी दृष्टि में स्वयं ही बहुत हीन जँचने लगी। | निरंजन बहुत नम्र प्रकृति के पुरुष थे; और विशेष कर स्त्रियों के साथ वे और भी नम्रता से पेश आते । यही कारण था कि वे वीणा का आग्रह न टाल सके । कई बार जाने का निश्चय करके भी वे न जा सके; किन्तु आज वीणा ने सोचा कि अब मैं उन्हें कदापि न रोकूँगी; जाने ही दूंगी। मैं जानती हूँ कि उनका जाना मुझे बहुत अखरेगा, परन्तु यह कहां का न्याय है कि मैं अपने स्वार्थ के लिए एक पति-पत्नी को अलग-अलग रहने के लिए बाध्य करूं । न ! अब यह न होगा; जो बीतेगी वह सहूँगी; पर उन्हें अब न रोकूँगी ।
दूसरे दिन समय पर ही निरंजन आए । वीणा उन्हें ड्राइंग रूम में ही मिली । उन्हें देखते ही उठकर हँसती हुई बोली (यद्यपि उसकी वह हँसी ओंठों तक ही थी । उसकी अन्तरात्मा रो रही थी, उसे ऐसा जान पड़ता था कि निरंजन के जाते ही उसे उन्माद हो जायगा)-“कहिये निरंजन जी, आपने जाने की तैयारी करली ?”
निरंजन ने नम्रता से कहा-“जी नहीं ! मैं आज कहाँ जा रहा हूँ ? मैं तो जब तक आपकी रुबाइयों का अनुवाद न हो जायगा, तब तक यहीं रहूँगा ।”
वीणा बोली-“मेरी तो सब रुबाइयों का अनुवाद हो गया । आप देख लीजिए।"
अश्चर्य से निरंजन ने पूछा-"सच ? मालूम होता है, आपने रात को बहुत मेहनत की है।"
वीणा-“हां, मेहनत तो जरूर की है, किन्तु आपको आज जाना भी तो है । अब आप इन्हें देख लीजिए; दो-तीन घंटे का काम है; बस ।”
निरंजन मुस्कुराते हुए बोले-“क्यों, आप मुझसे नाराज़ हो गईं क्या ? आप मुझे इतनी जल्दी क्यों भेजना चाहती हैं ? मैं आराम के साथ चला जाऊंगा।"
वीणा ने निरंजन पर एक मार्मिक दृष्टि डालते हुए कहा-“निरंजन जी ! मैं नाराज़ होऊँगी आप से ? क्या आपका हृदय इस पर विश्वास कर सकता है ? मैं तो जानती हूँ कभी न करेगा; किन्तु जिस प्रकार आप इतने दिनों तक मेरे आग्रह से रुके रहे, उसी प्रकार मेरे अनुरोध से आप आज रात को गाड़ी से चले जाइए।"
निरंजन ने दृष्टि उठाकर एक बार वीणा की ओर देखा; फिर वह अनुवाद की हुई रुबाइयों को देखने लगे।

   0
0 Comments